जनजाति समाज को वनों पर अधिकार देने हेतु केंद्र सरकार की पहल
कुछ ही माह पूर्व अर्जुन मुंडा ने ट्वीट किया था की वन पर्यावरण मंत्रालय के साथ मिलकर आगामी दो वर्षों मे सामुदायिक वनों पर अधिकार देने का कार्य एक अभियान चलाकर पूरा करेंगे.
highlights
- आज की यह कार्रवाई यह इस संकल्प को पूरा करने की तरफ पहला कदम है
- इस कानून का क्रियान्वयन करने का कार्य जनजाति विभाग का है
- इस कानून के तहत सामुदायिक वन संसाधनों पर अधिकार प्राप्त करने हेतु उचित प्रक्रिया से आवेदन करवाएं
झारखंड:
केंद्रीय जनजाति कार्य मंत्री श्री अर्जुन मुंडा एवं केंद्रीय वन-पर्यावरण मंत्री श्री प्रकाश जावड़ेकर ने जनजाति समाज को वनों पर अधिकार देने की घोषणा करते हुए, दोनों मंत्रालयों के प्रमुख सचिवो के हस्ताक्षर द्वारा एक संयुक्त पत्रक जारी किया. इसका प्रमुख उद्देश्य यह है कि, वन अधिकार कानून के तहत सामुदायिक वन संसाधनों का अधिकार ग्राम सभा को दिया जाए. वनवासी कल्याण आश्रम और जनजाति समाज यह माँग कई वर्षों से कर रहा है. केंद्र सरकार के निमंत्रण पर दिल्ली आए कल्याण आश्रम के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डा. एच के नागू - हैदराबाद, जनजाति हितरक्षा प्रमुख गिरीश कुबेर, देवगिरी-महाराष्ट्र के प्रदेशाध्यक्ष चेतरामजी पवार व गुजरात, छत्तीसगढ़, म.प्र; झारखंड व असम के जनजाति सामाजिक नेता इस महत्वपूर्ण समारोह के साक्षी रहे. विलम्ब से ही सही पर सही दिशा मे की गई इस पहल के लिए अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम केंद्र सरकार विशेषकर वन एवं पर्यावरण मंत्री श्री प्रकाश जावड़ेकर और जनजाति कार्य मंत्री श्री अर्जुन मुंडा का अभिनंदन करता है. आशा है आगे भी समय-समय पर किसी राज्य में इसके क्रियान्वयन के स्तर पर कोई समस्या निर्माण होती है तो दोनों मंत्रालय इसी तरह संयुक्त पत्रों के माध्यम से उस समस्या का समाधान करेंगे.
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कुछ ही माह पूर्व अर्जुन मुंडा ने ट्वीट किया था की वन पर्यावरण मंत्रालय के साथ मिलकर आगामी दो वर्षों मे सामुदायिक वनों पर अधिकार देने का कार्य एक अभियान चलाकर पूरा करेंगे. आज की यह कार्रवाई यह इस संकल्प को पूरा करने की तरफ पहला कदम है. इस कानून का क्रियान्वयन करने का कार्य जनजाति विभाग का है, जो इसका नोडल विभाग है. केंद्रीय जनजाति मंत्रालय द्वारा सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को इस संबंध में समय-समय पर उचित मार्गदर्शक बिंदु भेजे हैं. किंतु अनेक राज्यों में जनजाति मंत्रालय के साथ वन मंत्रालय का तालमेल नहीं होने के कारण जनजाति समाज आज भी वन संसाधनों से वंचित है. इस वन अधिकार कानून-2006 के लागू होने के बावजूद वन विभाग के अलग-अलग नियम और कानून होने के कारण, राज्यों की फोरेस्ट ब्यूरोक्रेसी द्वारा इस क़ानून की मनमानी व्याख्या के कारण अनेक राज्यों ने जनजाति समाज को अपने परंपरागत वन क्षेत्र के पुनर्निर्माण, संरक्षण, संवर्धन एवं प्रबंधन के अधिकारों से वंचित रखा. इसी कारण 2007 से अब तक इस सामुदायिक वन अधिकार का क्रियान्वयन 10% भी नहीं हुआ है.
महाराष्ट्र और ओडीसा जैसे कुछ राज्यों ने इस सामुदायिक वन अधिकार
CFRR को देते हुए ग्राम सभाओं को सामुदायिक वन क्षेत्र की सुक्ष्म कार्य योजना बनाने हेतु वित्तीय सहयोग प्रदान किया है. महाराष्ट्र में ग्राम सभाओं को सक्षम करते हुए सामुदायिक वन प्रबंधन का एक डिप्लोमा कोर्स भी प्रारंभ किया है. ओडीसा एवं महाराष्ट्र में जिला स्तरीय कनव्हर्जन्स कमिटी स्थापित करते हुए सामुदायिक वन क्षेत्र के पुनर्निर्माण एवं संवर्धन हेतु ग्राम सभा को तकनीकी एवं वित्तीय सहयोग भी देना शुरू किया है. आज की पहल से देश के अन्य राज्यों में भी अब यह सामुदायिक अधिकार देने का कार्य गति पकड़ेगा. वनवासी कल्याण आश्रम देश के सम्पूर्ण जनजाति समाज को, विशेषतः जनजाति समाज के जन प्रतिनिधियों, सामाजिक नेताओं और जनजाति समाज के शिक्षित युवाओं को आवाहन करता है कि, वन क्षेत्र पर निर्भर जनजाति समाज के गांव, टोला, पाडा, बस्ती को इकट्ठे लाएं, उनकी ग्राम सभाओं के जरिये इस कानून के तहत सामुदायिक वन संसाधनों पर अधिकार प्राप्त करने हेतु उचित प्रक्रिया से आवेदन करवाएं.
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गांवों में जनजागरण और उन्हें संगठित कर वन संसाधनों का पुनर्निर्माण-संवर्धन करते हुए वनों की रक्षा करें. इससे वन पर्यावरण एवं जैव विविधता की रक्षा होगी, ग्रामीण जनजातियों को उपलब्ध स्थानीय आजीविका भी सुरक्षित होगी जिससे पलायन भी रोका जा सकेगा. हम सभी राज्य सरकारों का भी आह्वान करते हैं कि आज की इस संयुक्त गाइड लाइन के अनुसार राज्यों में भी वन एवं जनजाति विभाग मिलकर इस सामुदायिक वन संसाधनों के अधिकारों को राज्य के प्रत्येक गाँव तक - ग्रामसभा तक पहुंचाए. ग्राम सभा को मजबूत बनाते हुए उन्हें तकनीकी एवं वित्तीय सहयोग दें ताकि देश के सम्पूर्ण जनजाति समाज को स्वावलंबी एवं स्वाभिमानी बनाया जा सके. गांधीजी का ग्राम स्वराज्य का विचार, पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का अंत्योदय का सपना और आज के प्रधानमंत्री का आत्मनिर्भर भारत का संकल्प ये सब इसी प्रकार की नीतियों का पालन करने से साकार होंगे. वन मंत्रालय और राज्यों के वन विभागों को इसके लिए अधिक सकारात्मक, अधिक सक्रियता से काम करना होगा.